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Prakash Kumar Khowal

Others

3.7  

Prakash Kumar Khowal

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माँ तुम सच कहती हो

माँ तुम सच कहती हो

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माँ तुम सच कहती हो, यह दुनिया बहुत पराई है

पत्थर सा दिल सबका, छोटी सी बात पर भी लड़ाई है

जितनी ज्यादा मदद करी मैंने, या करी किसी की भलाई है

वक्त आने पर साथ कोई ना देता, सबने यही रीत अपनाई है।


लूटा कर सब कुछ अपना, मैंने जिसको भी समझाया है

वक्त आने पर उसने ही, अपना असली रंग दिखाया है

अपना किसे बनाऊं इस जग में, यहां सब खुद के लिए जीते हैं

शाम सवेरे जब भी मिलो इनसे, अपने लिए ही बात करते हैं।


माँ तुम सच कहती हो, यह दुनिया सच में झूठी है

जब से दिया साथ सच्चाई का, तब से मुंह फुलाए बैठी है

माँ अब इस दुनिया में, अच्छाई का कोई मोल नहीं

सब जी रहे हैं अपनी मर्जी से, ना किसी के बोल सही।


माँ तुम सच कहती हो, यहां कोई नहीं है अपना

आगे बढ़ने में साथ है अपने, मत देखो ऐसा कोई सपना

बड़े-बुजुर्ग सच कहते हैं, परिवार से बड़ा ना कोई धन है

समझ ना पाया जो, उनके पास सब कुछ हो कर भी निर्धन है



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