माँ - सी
माँ - सी
मासी नहीं माँ थी वो,
मेरे दिल की धड़कन थी।
रजनी की भाँति शांत चित्त ,
ममता की वो मूरत थी।
हर दुःख सीने में ले,
चुप होंठों से मुस्काती थी,
मेरे दिल की धड़कन थी।
प्यार दिया इतना मुझ को,
गले लगाया सब जन को,
जब छुट्टी में वो आती थी,
माला, चूड़ी, लहंगा लाती थी।
प्यार से बाहों में भरके
कितना वो दुलराती थी।
मेरे दिल की धड़कन थी।
पल में इच्छा पूरी करती ,
मैं अचरजमय हो जाती थी।
हाथों में जादू था उसके,
क्या-क्या वो कर जाती थी।
थाल सजा कर मेरी राह
निहारा करती थी,
मेरे दिल
की धड़कन थी।
चाहती थी मैं दूर न जाऊँ,
पास सदा उसके ही रहूँ
कोशिश बहुत करी थी उसने,
ये मन की बात न हो सकी जो,
उसको बहुत सताती थी।
कब आओगी बेटा?
कब आओगी बेटा?
यही बात दोहराती थी।
मेरे दिल की धड़कन थी।
तेजमय-निश्छल चेहरा
लेटी थी शव-शय्या पर,
कान्हा की भक्ति करती थी,
श्रावन, शुक्ल, शुक्र, नवमी को
कान्हा ने तार दिया उसको,
मेरे दिल की धड़कन थी।
मासी नहीं माँ थी वो,
मेरे दिल की धड़कन थी,
जो मेरे दिल में रहती है,
जो मेरे दिल में रहती है,
जो मेरे दिल में रहती है।।