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Poetry By Jyoti Dixit

Others

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Poetry By Jyoti Dixit

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मां मैं तेरी ही परछाई हूं

मां मैं तेरी ही परछाई हूं

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में खुशनसीब जो तेरी बेटी बन इस दुनिया में आई हूं, 

मां अक्सर लोग मुुझे कहते हैं कि मैं तेरी परछाई हूं। 


तू ही तो है जिसने चलना सिखाया,

जब लडखड़ाए मेेेरे कदम तो सँभलना सिखाया, 

तू ही है जिसने मुझे हर मुश्किल से बचाया, 

और जो हो जाए कोई गलती तो कभी

डांट के तो कभी प्यार से समझाया।


जाने कैसे समझ जाती हो तुम मेरी

आवाज से मेरे दिल का हाल ये

में आज तक नहीं समझ पाई हूंं।

ये मेरी खुशनसीबी जो तेरी बेटी

बन इस दुनिया में आई हूं।


यूं ही नहीं कहते हैं लोग

कि प्यार अंधा होता है, 

ये सिलसिला भी एक मां की

कोख से ही तो शुुरू होता है,

जिसे देखा नही, जाना नहीं उसे वो

अपने अंदर महसूस करती है, 

9 महीने तक एक नई जान को जन्म देने के लिए 

ना जाने कितने दर्द सहती है।


 कभी teacher, कभी दोस्त,

कभी doctor ना उसके कितने रूप होते हैं, 

खुद को चाहे जो हो जाए कुछ नहीं कहती,

दुनिया सर पर उठा लेेती है जो बीमार हम होते हैं।

सबसे पहले तुम्हारा चेेहरा आता है

मेरी आँखों के सामने, जब जब मैं घबराई हूंं।


 ये मेरी खुशनसीबी जो तेरी

बेटी बन इस दुनिया में आई हूं।

मां अक्सर लोग मुुझे कहते हैं

कि मैं तेरी परछाई हूं।


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