क्यों मुखबिर सा मै हो गया
क्यों मुखबिर सा मै हो गया
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क्यों मुखबिर सा मैं हो गया
उस शख्स की तलाश में,
क्यों दर दर में भटकता रहा
उस इंसान की याद में।
क्यों मुखबिर सा मैं हो गया
उस एहसास की पहचान में,
क्यों बार बार में सोचता रहा
उस एहसास के इंतजार में।
क्यों मुखबिर सा मै हो गया
उस कस्बे के लिबास में,
क्यों बार बार में वहां घूमता रहा
किसी अपने की तलाश में।
क्यों मुखबिर सा मै हो गया
उस चांद के मिजाज़ से,
क्यों उसमे ही मै ढलता रहा
उस चांदनी के अंदाज़ में।
क्यों मुखबिर सा मै हो गया
उन लफ़्ज़ों के अल्फ़ाज़ में,
क्यों उसमे ही मै डूबता रहा
उन शब्दों के एहसास में।