कुशल मूर्तिकार
कुशल मूर्तिकार
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सोचती हूं
मैं कौन हूं ?
क्या उद्देश्य है मेरा?
मनुष्य जन्म लिया तो क्या करूं ?
मैं फिर पाती हूं कि
मुझमें मनन शक्ति है,
चिंतन शक्ति है,
जो मुझे पशु से स्वतंत्र अस्तित्व देती है
जो मेरी संपदा है,
निरंतर आगे बढ़ना ही
कुछ नया करना ही मेरी मनुष्यता है,
प्रतिपल अनुभव लूँ
जो आज है कल उससे बेहतर करूं,
जीवन जीने के इस अवसर को
व्यर्थ ना मैं करूं,
जीवन को अपने भीतर से सृजित करूं
अनगढ़ पत्थर के रूप में जीवन का
कुशल मूर्तिकार बनूं,
यह हम पर है कि
मूर्ति रावण की या राम की गढ़ूं
जीवन के कोरे कागज पर
गीत लिखूं या गाली लिखूं
यह मुझ पर है कि मैं क्या करूं।
