कहीं और चल
कहीं और चल
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मेरे मन अब कहीं और चल,
रंजो-गम के जहान से निकल,
जहाँ कोई न हो तेरा,
जहाँ कोई न कहे मुझे मेरा,
ऐसी सुहानी, अनोखी जगह ले चल,
मेरे मन अब कहीं और चल।
जहाँ हम तुम हों बस अकेले,
न हों पिछली यादों के झमेले,
बस अपनी मुलाकातों के हों मेले,
ऐसी निराली, अलबेली जगह ले चल,
मेरे मन अब कहीं और चल।
जहाँ न कोई मुझे कुछ कहे,
बस मैं ही कहूँ तू बस सुने,
सुनकर खयालों के सपने बुनें,
मेरी खातिर मेरे संग में चल,
मेरे मन अब कहीं और चल।
देखो जीवन की सांझ है आई,
डराती है जीवन की सच्चाई,
लगता है अपनी आन पर बन आई,
अब विलग राह से तू निकल,
मेरे मन अब कहीं और चल।
