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खामोशियां

खामोशियां

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ख्वाहिशे बहुत थी,

लेकिन तक़दीर में तो कुछ अलग ही लिखा था!

कौन टाल सकता है होनी को?

जो होनी है वह तो होगी ही। 

अल्लाह के पैरों में गिर के वह उस दिन रोया था 

दुआ तो सब माँगते है,

लेकिन उस दिन उसने दवा माँगी थी,

प्यार से दूर भागने के लिए,

कुछ पल अपने आप से रुबरु करने के लिए,

उसने अपने आप को किसी और से प्यार करके खो दिया।

अपनी परछाईयों में खुद को ढूंढने लगा,

एक बात तो सब भूल ही गए

कि आखिर परछाई ही तो उसका पीछा कर रही थी,

और उसको चीख चीख कर पुकार रही थी।

आज लगता है जैसे उसने अपनी परछाईयों की

ख़ामोशियों से मुलाकात कर ली है, 

जैसे एक शायर को अपने शब्द लौटा दी गई हो,

जैसे एक जिस्म को अपनी जान मिल गई हो।

दुआ तो मैंने भी माँगी थी तुम्हारे लिए, 

लेकिन तुम किसके लिए माँगते हो?


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