कब जायेगी ये रात
कब जायेगी ये रात
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हुआ सवेरा जब सूरज निकला ,
कोई भूखा घर से निकला,
घर पर नहीं है अन्न का दाना
लेकर खाना उसे है आना,
घर पर राह दख रहे हैं
बच्चे भूख से रो रह हैं,
अपने दश में ये बात है आम
सरकार ना करती कुछ भी काम,
कैसे मिटाए गरीबी ऐसी
बढ़ती रहती दीमक जैसी,
देश को मिलते सब नेता एक से
एक भी काम ना हुआ किसी से,
देखे है वो गरीब की हालत
फिर भी ना छोड़े अपनी आदत,
इसी तरह जो चलता रहा
नेता अपना पट भरता रहा,
भूख से मर जायेंगे लोग
फैलता रहगा पूरेे दश में यह रोग,
आओ यारों कुछ कर दिखाए
नेताओं को पाठ सिखायें,
बस थोड़ी सीहिम्मत चाहिए
और थोड़ा सा जूनून चाहिए ,
फिर दखो होता है कैसा
सब के पास रहगा पैसा ,
हर दिन होगा सभी का एक सा
चाह हो अमीर या गरीब सा,
करता हूं मैं पर अपनी बात
दखते हैं कब जायेगी ये रात ।
