ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी तू क्या है? छलावा ही छलावा है
कभी खुशी कभी गम, धूप छाँव का साया है
कभी ख़ुशी इतना कि
पागल मन हवा में उड़ जाता है
और कभी गम इतना कि
तन भी बोझ बन जाता है
ज़िन्दगी एक अन्जान पहेली है
सुख दुःख की रसमय जलेबी है
सफलता-असफलता का सागर है तो,
मित्र – शत्रु का महासागर भी है
तो दोस्तो, क्यों नही ?
प्यार से शुष्क होती धरती को खुशनुमा बनाये,
ताकि जातें – जातें कुछ मधुर यादें छोड़कर जाए।
