जिंदगी का सफर
जिंदगी का सफर

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जिंदगी जिंदादिली का नाम है, तो मुर्झाया क्यूं है।
वक्त की तन्हाईयों में, आखिर चेहरा छिपाया क्यूं है।
गर खुदा मिले, रोककर पूछ लूं उससे।
राह कोनसी चलना है, मंजिल मिले जिससे।
वक्त की तपिश ने जला डाला मेरा आशियाना।
मानो पतझड़ ने छीना, पत्तो से ठिकाना।
सोंचता हूँ, खूब हंसू, चुरा लूं दुनिया से गमो को।
मगर मेरे ही गम इजाजत नही देते होंठो को।
खाक में मिल गई मेरे अरमानो की बस्ती।
किनारा मिलने से पहले डूब गई मेरी कश्ती।
शिकवा किससे करू, कहीं वफा की बू नही।
अरमान ताकते है जिन्है, वही नजर देखती नही।
राहो का अंदाज नही था, कि अंधियारा घना होगा।
वेवक्त चिराग जलाऐ_बुझाऐ, अब तो चिरागो ने भी कह
दिया, हमें बुझना होगा- हमें बुझना होगा।