जिंदगी का बेहतरीन मंजर
जिंदगी का बेहतरीन मंजर
जिंदगी का बेहतरीन मंजर सुखाला भी था
मुझको दिखा ऐसा फ़रिश्ता आला भी था
तकदीर में लिखा था जो ख़ुदा ने दिया बहुत
मगर गमों ने भीतर से उछाला भी था।।
भटक कैसे सकता था मैं अपने मार्ग से कभी
चारों तरफ से कर दिया खुदा ने उजाला भी था।।
जो कल तक दूसरों को अहसान-फरामोश कहते थे
उनकी जुबां पे लग गया आज ताला भी था।।
मर्ज को तो आना ही था इस शरीर के भीतर
मेरे घर के समीप में गंदा नाला भी था।।
आज दिल में हो रही है एक हलचल सी खुदा
शायद मौसम हो रहा बहुत निराला भी था।।
मैं कैसे कहूं कि मैं अकेला हूं दुनियां में
मेरे ऊपर बैठा एक रखवाला भी था।।
बचपन से कमी न हुई मेरी परवरिश में खुदा
मां ने बहुत प्यार से मुझको पाला भी था।।
मयखानों कि हवा से रहना बहुत दूर "मुकेश"
तुझकाे खुदा ने हिफाज़त से संभाला भी था।।