जी हां मैं कविता हूं
जी हां मैं कविता हूं


विचारों का है बड़ा मंथन,
लाखों मस्तिष्क में घूमता है,
भावनाओं का पिटारा है बड़ा गहरा,
कोई मोती उठाता है।
कोई इतिहास में डुबकी लगाता है,
कोई भविष्य के सपने दिखाता है,
कभी नारी को देवी दिखाता है,
कभी नारी की आबरू लुटती दिखाता है।
सैनिकों की वीर गाथायें कोई हर रोज़ सुनाता है,
हर घटना मुझमें कैद होती है,
कठपुतली मैं बनी, कभी हँसाती ,
कभी रुलाती और कभी गुदगुदाती।
जीवन का हर पहलू मेरे अस्तित्व में समाता है,
समाज का आइना हूं मैं सबक सबको सिखाती हूं,
सुनकर मुझे कोई दिल में बसाता है,
कोई पन्ने पर स्याही है
बिखरी पड़ी
सोच आगे बढ़ जाता है।
कोई नासमझ फाड़कर मुझे कचरा बनाता है,
जी हां मैं कविता हूं, मंच से पढ़ी जाती हूं,
परिचय मेरा संक्षिप्त किंतु
किताबों का पन्ना रचनाओं से भरा है।
ना जाने कितने रचनाकार
मेरी कोख़ से जन्मे हैं,
विचारों का अथाह सागर,
उनके मस्तिष्क में बनाती हूं,
और किताबों के पन्नों में
सज संवर कर प्रस्तुत हो जाती हूं।
विचारों भावनाओं और हादसों की
कमी नहीं इस संसार में,
इसीलिये मैं कविता बनकर हर बार
एक नये रूप में आती हूं,
अच्छे सन्देश सिखाती हूं।