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Kanchan Lalwani

Others

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Kanchan Lalwani

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इश्क़ कि बाज़ी हो गयी ताश कि भांति,

इश्क़ कि बाज़ी हो गयी ताश कि भांति,

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ये इश्क़ कि बाज़ी, जो हो गयी ताश कि भांति,

दो तरफ़ा हुआ जैसा खेल, वैसा ही लगे ये

इश्क़ हमारा!

एक तरफ़ा ये इश्क़ हमारा,

दूजा तरफ संसार हमारा!

ये संसार जिसमे रहते तेरे-मेरे अपने,

वो खिलाफ हुए हमारे अपने!


जैसे ताश में इक्का हुक्म का सब पे है भारी

पड़े इश्क़ पे ये जाति बंधन भी बड़ा भारी,

इस दाँव पर लगा है जो इश्क़ हमारा,

और दूजा है समाज हमारा!

ऐसा लगे दूर हुए दिया-भाति,चाँद-चकोर,

वैसा ही दूर हुए तुम और हम!


ये इश्क़ कि बाज़ी, जो हो गयी ताश

कि भांति,

दाँव पर लगे तेरा और मेरा समाज,

ये जाति का हुआ कैसा मत-भेद है,

ये समाज हो गया है कठोर,

पर, ये भी तय है कि इश्क़ हमारा नहीं कमज़ोर!


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