इंटरनेट से पहले का बचपन और खेल
इंटरनेट से पहले का बचपन और खेल
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मेरे बचपन के खिलौने क्या क्या थे, ये सुन लो सब
धूप छांव का खेल था और मिट्टी की मूरत भी थी
और कभी तो बारिशों के मौसमों में कागजों की कश्ती थी।
इन हवाओं से सहारे ले के हमने खेले थे।
डोर को कागज में बाधा और उसे लहराए थे।
सावन के मौसम का सुहाना पन था।
हरियाली थी बाग में तितली पकड़ने का मन था।
आम के झूले झूल के देखे ऐसा खेल कहीं ना था।
गीत सुनाते गाना गाते हर लड़का दीवाना था।