है आर्यवर्त अपना महान
है आर्यवर्त अपना महान
है आर्यवर्त अपना महान,
सदियों से चलता आया अविराम।
सुखद वृक्ष की छांव में
अपनी धरती अपने गांव में,
थोड़ी सावन की हरियाली है
कोयल की कूक निराली है।
कुछ रेत के कण हैं
कुछ बहते झरने निर्झर है
उगती किरणों की लाली है,
प्रकृति की रीत निराली है।
अपने घर के आँगन में,
अपनी माता के ऑंचल में,
खेलते बच्चों की किलकारी है
भौरे की गूंज निराली है।
जलते चूल्हे की चिंगारी
एक सुखद की प्रीत निराली
जुगनू की चमक उजाली हैं
यह शाम अजब निराली है।
देखो तो धर्म अनेक हैं
हिन्दू मुस्लिम सब एक हैं
बस रहन-सहन का फर्क है,
सिक्खों की कटार निराली है।
कुछ नन्हे मुन्हों की कलाकारी है
कुछ फूलों की सजती डाली है
चमकते दिन व रातें काली हैं
राखी पर चमक निराली है।
आमों की डाली पर झूला
देखकर पथिक राह भूला
वायु की गति लचीली है
पर्वत की छटा निराली है ।
गंगा का जल है शवेत निर्मल
बह रही अनंत और अविरल
श्याम वर्ण की लहराती
यमुना की छवि निराली है।
ऋषि मुनियों की मिट्टी पर
इस राम कृष्ण की धरती पर
गायी गथाएं प्रेम पूर्वक
कवियों ने रचना की निराली है।।