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Stuti Jain

Children Stories

3  

Stuti Jain

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गलियों की क्रिकेट

गलियों की क्रिकेट

2 mins
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बचपन के उस जमाने में वो दिन

सबसे यादगार हुआ करते थे

जब हर गली मोहल्ले में सचिन और

सहवाग मिला करते थे लोगों के आने

जाने के लिए बनाई जाने वाली गली

हमारे लिए क्रिकेट का मैदान हुआ करती थी

हर घर में आवाज़ लगाकर बुलाए गए

खिलाड़ियों से एक मजबूत टीम बन

जाया करती थी

कोई ball ले कर आता ,तो कोई bat

लेकर आता

तीन लकड़ियों को इट का सहारा देकर

उससे stump बनाया जाता

इस खेल में अपने ही नियम व कायदे

हुआ करते थे

यहां कोई umpire नहीं होता था,

यह खेल तो कसमों और वादों पर

चला करते थे


जैसे बगल वाली दीवार के 2 रन और

सामने वाले घर के 4 रन मिला करते थे

और अगर ball शर्मा जी की छत को छू ले

तो सब जोर से छक्का चिल्लाया करते थे

1 रन लेने के लिए भी इतनी जद्दोजहद होती थी

जैसे हमारी दौड़ मिल्खा सिंह के साथ

हुआ करती थी

Out होने पर भी सबके अपने-अपने मत

और विचार थे


जैसे ball कीचड़ में जाए या किसी के छत पर

तो इसके लिए batsman ही जिम्मेदार थे

ऐसा करने पर उन्हें उसी वक्त out करार

दिया जाता

मगर शामत तो तब आती थी जब bat लाने

वाला लड़का bat के साथ अपने घर भाग जाता

ऐसा होने पर सबके चेहरे पर मायूसी छा जाती

पर उस वक्त घर के कपड़े धोने वाली (थापी)

प्रयोग में लाई जाती

हमें देखने के लिए दर्शक अपनी-अपनी

छतों से हमारा उत्साह बढ़ाते

और हम सब शाम ढले जीत या हार के

साथ अपने घर लौट आते

उस वक्त क्रिकेट महज खेल नहीं था हमारे लिए

हम सब के जज्बात भी उससे जुड़ा करते

जब भी याद करने बैठे उस दौर को तो सोचते हैं

काश !!!!बचपन के दिन वापस लौट आते



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