एक ज्योत
एक ज्योत
हर उठते सूरज के साथ,
ढलती हैं जीने की आस;
हर ढलती शाम के साथ,
जी उठता है लिखने की प्यास;
कवि बनने की चाहत, जग सा जता हैं मन मे,
सुकून सा दे जाता हैं, अंदर छिपा लेखक
जीवन में ||
कितनी हसीन शामें, कितने ही हसीन लम्हें
वो रातों के, न देखे है इन नैनन ने;
मुंह फेर जाता है क्यों, जब भी चाहता हूं,
आना, तेरे आंगन में !!
मुंह फेर जाता है क्यों, जब भी चाहता हूं,
आना तेरे आंगन में ?
बस कर ये बैर; और न सहा जाएगा,
खामखां तकलीफ देना ही क्या , तुझे सर्वश्रेष्ठ
बना जाएगा ??
खामखां तकल्लुफ देने ही क्या तू
सर्वशक्तिमान कहलाएगा !!
खामखां ... खामखां....खामखां....!
जीवन भी हैं कया खामखां,
तकलीफें, दुःख - दर्द भी क्या खामखां,
बस कर दे, अब तू, मिटा दे इस क्षण यूं
और ना सहा जाएगा, मनभीतर जो तू हैं बसा,
प्रत्यक्ष कब सामने आपाएगा ?
अब और न सहा जाएगा.... अब और न सहा जाएगा.....
अब
और न सहा जाएगा !
शुक्रगुजार आपका
सदैव कवि।