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Shazia Kazmi

Others

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Shazia Kazmi

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एक और आज़ादी

एक और आज़ादी

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जो तुमने समझ कर नन्हा सा पौधा,

उखाड़ फेंकना चाहा हमें,

ये भूल तुम कर बैठे मजूर समझ कर हमें,

मजबूत उतनी ही निकली पकड़ हमारी इस मिट्टी से।

मासूम, लहलहाते पत्तों को तोड़कर,

तुम तो मनाने चले अपनी जीत का जशन!

भूल कर बैठे की जड़ें हमारी फैली है इस मिट्टी में चारों तरफ़।

ना तुम्हारी सियासत काम आएंगी, ना साजिशें,

जब ये नए उम्मीद के पौधे लहराएंगे इस देश की मिट्टी पर।

कितनो को काट पाओगे, कितनो को रोक पाओगे?

ये आज़ादी का जाम तुमने कहां चखा?

गुलामी ना तब सही थी, ना आज सहेंगे,

जो सौ उखाड़ लाओगे, हम लाख़ में उग आएंगे,

इस देश की सच्चाई को तुम नहीं झुठला पाओगे।

ताकत तुम्हारी, हथियार तुम्हारा, आवाज़ दबाने की है आदत तुम्हारी,

हम तो बस अपने कलम से एक नया इतिहास लिखते जायेंगे।


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