ए वक़्त
ए वक़्त
ए वक्त तू शायद कल ही नया नया आया था
कुछ अनकही सौगातों को
खुद में समेट के लाया था,
नजरें मिलीं थीं जो तुझसे पिछली बार
मैं अपनी ख्वाहिशों के ढेर पे तुझसे मिलने आया था।
देखा... शायद ही होगा तूने ए वक्त
तेरे दर पे तो हजारों ख्वाहिशें रहती हैं
मजलूम बेबस इंसानो की सारी फरमाइश रहती हैं
बदलना तेरी फितरत है..
और ना रूकने की आदत भी।
इन सब बातों से अनजान
मैने अपनी धुन को ही गाया था
अपने नये वक्त का नया किस्सा
गलियारों मे कह आया था।
खैर...
खामोश खड़ा था तू अब तक
मन ही मन मुस्काया था,
जो भी कहना था तूझको,
तेरी आखों मे भर आया था।
गुजर गये जो कुछ दिन यूं ही
अपनी हर ख्वाहिश को मैने बेजान मरा सा पाया था..
देखा तेरी ओर जो मैने
तू पहली बार इतराया था।
सोचा..
क्या इतना भोला था मैं
जो वक्त के पास यूं आया था
चल मन तू ऐसे ही..
बेवजह ही ललचाया था।
उदासी मेरी दिखी जो तुझको
तू थोड़ा घबराया था,
ऐ वक्त पल भर के लिए ही सही
तू मेरे हिस्से आया था।
कहना था शायद कुछ मुझसे
जब तूने गले लगाया था।
कहा जो तूने फिर मुझसे
वो मै आज बताता हूँ,
तेरे हिस्से का ये किस्सा
मै दुनिया को बतालाता हूं।
वक्त है तू गुलाम नहीं
ये दुनिया को इल्म कराता हूं।
नहीं किसी के हिस्से मे तू
ना किसी की जागीर है
मुठ्ठी मे रखने की ख्वाहिश सबकी
पर सबकी अपनी तकदीर है।
रेत सा है तू शायद
जोर की जकड़ से फिसलता है
इल्म नहीं इस बात का सबको
तू लम्हों से बनता है।
समझ गई जिस दिन ये दुनिया
ना कोई जोर आजमाएगा,
लम्हों मे जाएंगे सारे
फरियादी दौर थम जाएगा।
