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Kiran Bedi

Others

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Kiran Bedi

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दर्द से रिश्ता

दर्द से रिश्ता

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दर्द से रिश्ता कुछ ऐसा सा जुड़ा है,

जैसे किस्मत की कलम में स्याही आंसुओ का भरा है।

नसीब का खेल भी बड़ा है,

कोई आसमान पर बैठा तो कोई जमीन पर पड़ा है।

फूल खिले उसी डाली,

जिसे तोड़े वही माली।

अगर भगवान के चरणों में जाए,

तो प्रसाद बन माथे पर चढ़ जाए।

अगर अर्थी पर गए,

तो अशुभ बनकर रहे।

कभी दुल्हन की सेज सजाए,

तो कभी महफिलों की रौनक बढ़ाए।

अब फूल की क्या है गलती,

जब उसकी नसीब ही है पलटी।

हमने कभी किसी का दिल नही दुखाया,

फिर भी सिर्फ दर्द ही किस्मत मे आया।

जिससे जितना प्यार जताया,

वो उतना ही होता रहा पराया।

आखिर किस बात की मिल रही सजा,

मुझे नही चाहिए कोई भिख या दया।

भूख है प्यार की,

ममता की दुलार की।

जन्म लेने के लिए भी लड़ी,

पैदा होते ही मुसीबत बनी।

किसी ने न चाहा गोद मे लेना,

पापा सोचे अब होगा दहेज देना।

एक बार गले तो लगाओ,

पहले मुझे दिल से तो अपनाओ।

खाना-पीना पढ़ाई- लिखाई,

हर काम मे हुई कटाई।

लड़की है इसको क्या जरुरत,

जल्दी शादी कर दो देखकर कोई महूरत।

इज्जत बचाऊ या पढ़ने जाऊँ,

सबको मुँह लगाऊ या ऐसिड का शिकार बन जाऊँ।

अगर बलात्कार हो जाता है,

तो मोमबत्ती क्यों जलाया जाता है?

क्या मिलेगा ऐसा करके?

क्या ऐसे अब इंसाफ होगें?

आखिर कब तक ऐसे जीए?

खुदा ने हमे पंख क्यों है दिए?

डर डर कर जीते जी मर जाने के लिए,

या पंख फैला खुले आसमान मे उड़ते जाने के लिए?


                  


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