दोस्ती
दोस्ती
इश्क़ बुलंद पाया है
मगर दोस्ती पहले
पायदान पर खड़ी होती है।
प्यार ही की तरह दोस्ती ने
न रंग देखा न रूप देखा
न जाति देखी न धर्म देखा
न उम्र देखी न लिंग देखा।
न अमीरी देखी न ग़रीबी देखी
न देस देखा न परदेस देखा
मगर जब निभाने का वक़्त आया
दोस्ती ने प्यार को भी नहीं देखा।
शहर से बाहर सड़क पर
छोटी- सी पुलिया
शाम के झुटपुटे में
दोस्तों का इंतज़ार करती है।
हम यहीं आकर दिन भर का
तमतमाया चेहरा पोंछते थे
दिन भर का जमा दुःख
ठहाकों की सूरत में
यही आकर उड़ता था।
हम इतना हँसते थे
इतना हँसते थे
कि हँसी विवश होकर
रुदन में बदल जाती थी।
हम दोस्त परिंदे थे
जो थोड़ा ऊपर उड़ते थे
इतना कि धरती
साफ-साफ दिखाई देती थी।
हम से ऊपर प्रेम के
पंछी विचरते थे
कुछ दोस्त उड़ चले
दाना-पानी की खा़तिर
नये ठिकानों की तलाश में।
बरसों बाद वो आये
चिट्ठियों की शक्ल में
कुछ दोस्त उतर आये धरती पर
और घर बसा कर रहने लगे।
वो अब भी मिलते हैं
मगर निहायत अदब
और तकल्लुफ के साथ।
कुछ दोस्त बहुत
आगे तक उड़ चले
इतना कि उनके आने की
उम्मीद भी न रही
वो अब तस्वीरों में मुस्कुराते हैं।
