दीए जलते रहे
दीए जलते रहे
मातृभूमि थी गरिमा उनकी,
गाते थे जन्मभूमि का आभिराग!
मुखमण्डल पर थी क्रांति समर की,
मन में महावीर सा वैराग्य!
उनकी स्म्रति पर रचे गए उपन्यास,
और इतिहास के पन्ने मुड़ते रहे!
पर दीये जलते रहे..!
अकथनीय है हस्ती उनकी,
जो पथ प्रदर्शक भारत बना गए!
गूंजे इन्ही गलियारों मे गान उनके,
जो भारतवर्शी भूमिकुंज में समा गए!
कुछ ज्ञात कुछ अज्ञात लड़ते रहे,
उनको हम दिलों से याद करते रहे!
पर दीये जलते रहे..!
लक्ष्मीबाई की थी शान खड्ग डाल,
प्रताप ने था किया कमाल,
भगत सिंह ने थी उठाई मशाल,
फ़िर बापू ने विद्रोही दिए निकाल,
वक्त के साए यूँ ही बदलते गए,
मराठा से राजपूत तक आहुति कुर्बान करते रहे!
पर दीये जलते रहे..!
समाजवाद मे उमड़ा था साम्राज्यवाद,
आजादी लगने लगी थी अपवाद,
चूमा फंदा फांसी का कर ,माँ भारती को याद,
फ़िर शुरू हुआ था हमारा विजयनाद
सावन मे थी खेली होली,
और समर मे समर करते रहे,
पर दीये जलते रहे..!
ना देख सके वो आती बहारें,
कसक दिलों मे रह गई!
दिखा दिया था जौहर माटी का,
महक सुप्रभात की महक गई!
संदर्भ समय के बदलते रहे,
साए उनके दिलों मे बसते रहे!
पर दीये जलते रहे,
दीये जलते रहे..! !
