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Prabhanjana Tripathy

Others

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Prabhanjana Tripathy

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देख है तुमने कभी

देख है तुमने कभी

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क्या देखा है कभी ?

एक भटका हुआ बादल

जो बिछड़ गया है,

अपनी माँ की कोख से 

किसी अनजाने राहों पे

किसी मोड़ पर आसमान में,


जो चला रहा था उसका गुस्सा

फट पड़ने की कहीं,

सावन के बिना ही यूँ ही कहीं

यूँ ही कभी ।


क्योंकि करता है आज

मन उसका बरसने का

और डुबो देने का 

धरती का हर एक कोना

जो छीन रहा है,

समन्दर से उसकी अपनी जगह।


नहीं देखे तो आओ

दिखाता हूँ तुम्हें

उस जोड़ को,

उस प्रेमी को

और उस बादल को भी।


तुम बन जाना वो प्रेमी,

रूठा हुआ ,

बैठ जाना उस डाल पर

मैं लाऊंगा दाना तुम्हारे लिए,

लड़ते हुए तूफान से।


फिर डूब जाएंगे हम तुम

उस बादल के बरसात में

धरती के किसी कोने पर

सिमट कर लिपट कर

एक दूजे में।


लुप्त गुफ़्तुगू छाती पर भर

आसमान के उस बादल की तरह

उड़ उड़ के 

कहीं समंदर से दूर

जब मिल जाएंगे तो

बिछड़ने का डर नहीं।।



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