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chhaya bhadauria

Others

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chhaya bhadauria

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‘ढूँढ़ लेते हो तुम अवशिष्ट में

‘ढूँढ़ लेते हो तुम अवशिष्ट में

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जुटे रहते हो सुबह से शाम,

क्यों नहीं करते कुछ विश्राम ?

धूप हो या छाँव,

नहीं थकते तुम्हारे पाँव ?

धूल, धुआँ, चिलचिलाती धूप,

करते नहीं बेचैन, लगती नहीं भूख ?

पैरों में नहीं चप्पल, कपडों में नही बटन,

कैसे हो जाते हो इस काम में मगन।

तुम्हारे अंदर छुपा है हुनर,

तभी तो निकालते हो कीचड़ से कमल ।

अपने इस हुनर को रखो तुम सँभाल,

आगे चलकर तुम्हें करना है कमाल ।

कहती है तुम्हारे हाथों की लकीर,

उठो, बढ़ो आगे यही है तुम्हारी तकदीर ।

तुम्हारे ही कंधों पर देश का भार है,

क्या कहें तुमसे…… ?

हमें तुम पर नाज़ है ।

थोड़ी शिष्टता इस देश के लिए भी दिखाओ,

यह देश बिखर रहा है तुम कर्णधार बन जाओ ।

 


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