बस एक शब्द
बस एक शब्द

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ना जाने कब से
मेरे सूने मन- आँगन में
उजियारा नहीं होता।
जाने कहाँ-कहाँ
तुम्हें नहीं ढूंढा
कभी सूरज का द्वार,
खटखटाया।
कभी चाँद के घर,
थाप दी।
कभी सितारों की घनी बस्ती में
तुम्हें घंटों तलाशा।
काश !
तुम कह जाती
तो मन तुम्हें यूँ न तलाशता
भटका मन
तृप्त हो जाता
बस तुम्हारे एक शब्द से
" माँ ! "