बरगद में टंगा झूला
बरगद में टंगा झूला
मेरे मासूम बचपन
पतंग बुलाती,तुझे लट्टू पुकारता है ,
बरगद में टंगा, टायर का झूला, पुकारता है।
रेत के घरौंदे, बिखरे नहीं ,खड़े हैं ,
रास्ता निहारते, गिल्ली, डंडा वही पड़े हैं,
गुड्डे-गुड़िया की शादी, कब से नहीं हुई है ,
बेर वाली बुढ़िया, अब तक नहीं मरी है।
अण्डा दो, पाई पाई का, कोई शोर अब नहीं है,
तितलियाँ को, पकड़ने का कोई,डर अब नहीं है।
आमों के बाग ,अब नन्हें चोरों को तरसते हैं,
अब कहाँ कुल्फ़ी वालों के, पहले से जलवे हैं।
कौन भोपूं की आवाज़ पर दौड़ लगाता है,
कौन बीस पैसों के लिए,दादा का पाँव दबाता है ?
प्रतिस्पर्धा का दौर ,नव संस्कृति का पहरा है,
बह जा हवाओं सा,ये वक़्त कब,किसके लिए ठहरा है?
तोड़ दे बंधन,खोल दे मुट्ठी,इसमे कुछ नहीं धरा है,
बह जा हवाओं सा,ये वक़्त कब,किसके लिए ठहरा है।