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बिटिया रानी

बिटिया रानी

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बेटी का जन्म लेकर,

आयी हूँ मैं दुनियाँ में ।

कैसे कहूँ कहानी अपनी,

शर्मिंदा हूँ अपनों में ।।


जन्म हुआ तो मातम छाया,

बड़ी हुई तो बोझ बताया।

भाई और पिता ने भी,

हमेशा ही एहसान जताया।।


‘लड़की पराया धन होती है’,

माँ ने भी यही समझाया ।

 इसी राह पर चलकर मैंने,

अपना सारा जीवन बिताया ।।


शादी करके चली जब,

पत्नी और बहू बतलाया ।

सास, ननद है मेरे जैसे,

फिर भी क्यों न मुझे अपनाया ।।


दिया जन्म बेटी को मैंने,

फिर से इतिहास दोहराया ।

बेटे के आते ही देखो,

पासा कैसे पलटाया ।।


मैं जननी, मैं बेटी, बहू और

देवी का रूप भी अपनाया ।

उनकी पूजा सबने की पर,

मुझको किसी ने ना अपनाया ।।


सीता, द्रौपदी जैसी महान नारी,

का मान जब ना रह पाया ।

मैं तो हूँ एक साधारण नारी,

कैसे बदल पाऊँगी काया ।।


इसी तरह है मेरी कहानी,

सारे जग को समझाया ।

नारी ने ही नारी को,

कैसे-कैसे तड़पाया ।।


कहते है दुनिया के लोग, कि नारी

शब्द में ही है कोई दोष ।

नारी शब्द में ही है कोई दोष, नारी

शब्द में ही है कोई दोष।।


क्या यही सच है, ऐसा दयनीय हाल,

नारी का भी हो सकता है ? 

क्या आपको भी ऐसा लगता है ? 

क्या सच में नारी का कोई

अस्तित्व ही नहीं है ।। 


अगर ऐसा होता तो  

तो आज आपके समक्ष ,

भला हम कैसे आते।  

अपनी भावनाओं को भला ,

फिर किस प्रकार बतलाते ।।


नारी की तो कोई परिभाषा नहीं है

क्योंकि वह तो उससे भी परे है।


हर रूप में, हर रिश्ते को

प्यार से संजोती है।

तभी तो ईश्वर से भी ज्यादा ,

माँ पूजी जाती है ।।


तू धन्य है नारी, तू ही

सृष्टि की निर्माता है।

तेरा मान ईश्वर से कम नहीं,

क्योंकि तू ही भाग्य विधाता है ।।


ऐसी नारी और उसकी ममता को मैं,

शत-शत करूँ प्रणाम ।।



                                        


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