बचपन वाली दोस्ती
बचपन वाली दोस्ती
आते गए जाते गये,
गमों को भुलाते गए,
नफरत को छोड़,
दोस्ती का हाथ बढ़ाते गए।
बहुत रुलाया,
बहुत हँसाया ,
इस जीवन ने
बहुतों को दोस्त बनाया।
बहुतों से किया प्यार,
किया इज़हार,
पर आज फिर से याद
आ गये
वो अपने पुराने यार।
दोस्ती तो बहुत किए
पर याद आ गयी वो
बचपन की दोस्ती,
वो बारिश का पानी
और कागज की कश्ती।
उन बचपन की दोस्ती
को भूलाऊँ कैसे,
साथ ना होकर भी
उसे निभाऊँ कैसे।
कैसे भूल जाऊं
वो अपने झूठ-मूठ
के खेल,
वो अपने राज महल,
और चलती हुई रेल।
कैसे भूल जाऊं
वो बारिश में नहाना,
और एक दूसरे का खाना,
छीन कर खाना।
वो कटी पतंग को पकड़ना,
और हर बात पर लड़ना,
और कट्टी हो जाना,
फिर एक उंगली
जोड़कर बट्टी हो जाना।
नहीं भुला सकता उन यादों को,
वो बचपन के साथों को,
बहुत हुई लोगों से दोस्ती,
लेकिन नहीं मिले वह
बचपन वाली दोस्ती।
पता नहीं आज कहाँ होंगे वह
शायद वो भी मुझे याद
कर रहे होंगे,
वो बात जो मैं कह रहा हूँ वही
वो भी कर रहे होंगे।
ये बचपन की दोस्ती ही तो,
सच्ची दोस्ती होती है,
ये तो साथ होने पर भी
याद रहती है,
ये एक अनमोल धागे से
बंधा होता है,
जिसे खुद चाह कर भी
कोई खोल नहीं सकता है,
ये दोस्ती तो अमर है,
इसमे नहीं कोई भ्रम है,
ये तो आबाद रहती है,
जिन्दगी के साथ भी और
जिंदगी के बाद भी रहती है।
