बारिशों में भी हमारे घर जलते हैं
बारिशों में भी हमारे घर जलते हैं
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मानता हूँ खुदा तूने की है लाखों बारिशें,
पर यहाँ बारिशों में भी हमारे घर जलते हैं।
अनबन नही सुलझी रात सूरज की अबतक,
रात आते ही सूरज कहता है, हम चलते हैं।
पता है क्यों चाँद अक्सर कटते है आसमां में,
शायद वो मेरे महबूब की अदा से जलते हैं।
एक उम्र से हम मंज़िल को चढ़ाई चढ़ रहे,
और उन्हें मंज़िल, ढलान रास्तों पर मिलते हैं।
उससे हम यार नफरत करें भी तो कैसे करें,
उसके तो फूलों के व्यापार काफी चलते हैं।
आसमां का इश्क़ तुम मियां कुछ ऐसे समझो,
अनंत बूंदे गिरती हैं जब भी जमीं जलते हैं।
जहाँ हमारी तुम्हारी ख्वाहिशें मुक़्क़मल हों ,
चलो यार, ऐसे शहर के सफर पर चलते हैं।
