बालगीत - मुर्गा और लोमड़ी
बालगीत - मुर्गा और लोमड़ी
एक था मुर्गा डाल पर बैठा, खड़ी लोमड़ी ताना मारे;
मुर्गा चलता सदा जमीं पर, नीचे आओ मीत हमारे।
मुर्गा बोला नहीं मीत तुम, चालाकी मुझसे करती हो;
मीठी बातों में उलझाकर, खाने की चाहत रखती हो।
मुर्गे की इन बातों को सुन, लोमड़ी ने फिर बात बनाई;
हुआ समझौता पशु-पक्षी में, नई ख़बर है फिर सुनाई।
मुर्गा बोला खुश होकर, यह तो बढ़िया समाचार है;
घटनाएं और संघर्षों की तारीखें देतीं नया विचार हैं।
गर्दन लम्बी कर मुर्गे ने दूर तलक जब नज़र दौड़ाई;
अंटकी सांसें लोमड़ी की, बोलो कुछ दिया दिखाई।
नहीं-नहीं कुछ नहीं दिखा है धूल उड़ रहे आसमान में;
कुत्ते सारे दौड़े आ रहे, लगता भोजन के ध्यान में।
पूंछ दबाकर लोमड़ी भागी, बोली जोर जोर से भागो;
मुर्गे की कुछ सुनी नहीं, समझौते को तुम त्यागो।
मुर्गा खुशी-खुशी में नाचा और कथानक कुछ बांचा;
ख़बर लोमड़ी पर भारी व्याकुल ख़बर मिला नहीं सांचा।
