अपना घर अपना नहीं लगता
अपना घर अपना नहीं लगता
अपना घर अपना नहीं लगता,
जैसे कोई अनजानी सरहद
पार कर दी हो,
ये घर अब घर नहीं लगता
घर से बाहर निकले थे
फिर से लौट आने को,
पर लौट जाने से अच्छा ना आना ,
क्योंकि ये घर अब अपना नहीं लगता
बहुत ही ज़द्दो ज़हद के बाद
घर की गली में कदम रखा ही था,
चलते चलते कुछ एक दो घर
आगे पहुँचकर पीछे से किसी ने
रोक कर कहा ,
जिस घर की तुम तलाश में हो
उसका कोई वजूद नहीं लगता,
अपना घर अब अपना नहीं लगता
इस घर के सारे रंग फीके पड़ गए,
तस्वीरों के कांच यादों में बिखर गए,
दीवारों पर गोलियों के निशान पड़ गए,
मैं जिन ख़ुशियों को ढूँढता फिर रहा
इस घर में उनका मुनासिब होना
सही नहीं लगता
जाने कहा चले गए वो लोग जो मेरे साथ थे,
मुझसे इतना भी क्या खफा होना की
इस बंजर ज़मीन पर जीना,जीना नहीं लगता,
अपना घर अब अपना नहीं लगता,
जैसे कोई अनजानी सरहद पार कर दी हो,
ये घर अब घर नहीं लगता .
