अनोखा बंधन रक्षाबधंन
अनोखा बंधन रक्षाबधंन
यह दुनिया भी ना जाने कैसे कैसे रिश्तों के धागों से बुनी है,
उसमें सब रिश्ते मतलबी समझौते से लगते हैं,
अगर इस जहां में माता - पिता के बाद भला कोई रिश्ता है
तो वो है भाई- बहन का जो जहां में सबसे न्यारा - प्यारा
सबसे अलग विचित्र - सा, बस यही रिश्ता है जो
इस जहां में जो अटूट पवित्र बंधन हैं बाकि रिश्ते तो
सब भ्रम के बंधन है।
घर आँगन खिल उठता है गुलाब की फूल की तरह
जिसकी कदमों की आहट से वह एक बहन ही होती है
जिसके कदमों से ना जाने कितने घरों में अपने
कदमों से महक उठाती हैं घर बाग।
जिस घर में रहती हैं वो महक उठता है सम्मान - संस्कारों से।
सारे त्यौहार फीके से लगते है बहन जब तू साथ ना हो
क्योंकि तेरे बिना त्यौहार तो जैसे दीपक में लौ ना हो
वैसा है तेरे बिना तो त्यौहार भी अधूरे है
तुझसे ही तो रौशन होते है ये पूरे।
तेरे होते ही तो सज उठती हैं सूनी कलाई राखी से,
तो भैया दूज पर तिलक लगाकर हँसी ला देती है चेहरे ,
एक तू ही है बहन जो पूरे घर को होली दीवाली पर
सुन्दर रंगोली बनाके पूरे घर को जहां बना देती है।
बहन तू माँ पापा की परी है तो तू भाई की
आन बान शान जान है,
आपस में ना जानें हम कितना लड़ झगड़ ले
लेकिन दूसरा कुछ थोड़ा भी बोले तो लड़ लेते है
पूरे जहाँ से एक दूसरे की खातिर।
कभी रूठ सी जाती है छोटे बच्चे की तरह
कभी तू माँ की तरह डाँट भी देती हैं,
एक तेरी यारी दोस्ती है जो दुनिया के सारे
यार दोस्तों के आगे फीकी सी हैं,
भाई बहन के रिश्ते में ही सारे रिश्तों का अहसास है
जो भला बाकि रिश्तों में कहाँ है यही रिश्ता है
जो अटूट पवित्र बंधन है जो कभी ना टूटने वाला है
इस पवित्र रिश्ते के आगे है अनिल..…!
जहाँ के सारे रिश्ते नतमस्तक हैं।