अन्जान शहर की कथा
अन्जान शहर की कथा
एक दिन हुआ यूँ ऐसा ही मेरी परीक्षा ख़त्म हुई और मेरी नौकरी एक ऐसी शहर में हुआ इसका नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना था । जब मैंने अपने दोस्तों को भी पूछा कि वे उस शहर के बारे में कुछ जानते हैं कि नहीं,उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते हैं।जब मैंने गूगल किया तो उसमें दिखाया कि सौराष्ट्र का नाम की गली में स्थित रावेन्द्र या यादव जैसा कोई घर कहीं नहीं है जहाँ मुझे पी जी कि तौर पर रखने की व्यवस्था की गई है। यह देखकर मेरी आँखें आश्चर्य चकित रह रहीं। इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है कम्पनी से।
मैं भागते हुए अपने परीक्षा देते वक़्त जो केंद्रीय विद्यालय में मुझे जाना पड़ा मैं वहीं गई ताकि अगर किसी को पता रहे तो मेरी मदद कर सकते हैं।
उन्होंने साफ़ मना कर दिया कि वे नहीं जानते हैं कि अगर यूनिवर्सिटी का न्यौता आया है तो एक ऐसी जगह में लिखा गया है जिसके बारे में हमें कुछ भी पता नहीं है। कुछ लोगों ने मेरी हँसी उड़ाएं और कुछ लोगों मायूसी जतायी। मैंने अपने पिताजी से कहा कि चलो चलके देखें यह जगह कहाँ है वही कौन से कार्य के लिए मेरा सिलेक्शन हुआ है। हम चल पड़े एक गाड़ी में जो नागपुर होते हुए हैदराबाद से होके यूनिवर्सिटी के उस जगह तक पहुँचा सकते हैंदो दिन के अंतर्गत हम वहाँ पहुँचे और हमने वहाँ जाके देखा की राजघर जैसा हॉस्टल बना हुआ है. और यूनिवर्सिटी की तो बात ही मत करो। इतना ख़ूबसूरत कैम्पस मैंने आज तक नहीं देखा था।
तो इस कथा से हमें ये पता चलता है कि हमें हमेशा निडर हो कर हर क्षण हर आपत्ति का सामना करना चाहिए। यदि मैं के मारे दुबकके बैठ जाती घर पर तो क्या ये दृश्य देखने मुझे मिलता?
नहीं!