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Gopal Sinha

Others

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Gopal Sinha

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ऐसा सोचा न था

ऐसा सोचा न था

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दूरियां--

पास लाएंगीं एक दिन,

ऐसा सोचा न था।

मजबूरियां--

आत्मविश्वास बढ़ाएंगीं,

ऐसा सोचा न था।

अंधेरे में एक जलता दिया--

सूरज का एहसास दिलाएगा,

ऐसा सोचा न था।


आंधी तूफानों में,

जहां बड़े पेड़ हिल जाएंगे,

नन्ही-सी दूब हमें,

अपनी जड़ से--

जुड़े रहने का पाठ पढ़ाएगी

ऐसा सोचा न था।

घर में बंद होकर,

अंदर के कपाट खुलेंगे,

कुंठा और संत्रास सपाट निकलेंगे,

कल्पनाओं की बंजर भूमि से--

कविताओं के बंद सोते फूट पड़ेंगे,

विचार अंकुरित होंगे,

कागज पर आकार लेंगे,

ऐसा सोचा न था।


आशाएं सबल होंगी,

जिजीविषा प्रबल होगी,

हमारे अंदर भी--

एक आकाश होगा,

उमंगों का प्रकाश होगा।

घर में हरियाली होगी,

चेहरों पर लाली होगी,

हास और परिहास होगा,

हर दिन एक खास होगा।

कल का विश्वास होगा,

अपनेपन का--

सहज एहसास होगा।

क्या खोया, क्या पाया

इसका जब हिसाब होगा

पहले से कहीं अधिक

अपने पास होगा--

ऐसा सोचा न था।



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