ऐसा सोचा न था
ऐसा सोचा न था
दूरियां--
पास लाएंगीं एक दिन,
ऐसा सोचा न था।
मजबूरियां--
आत्मविश्वास बढ़ाएंगीं,
ऐसा सोचा न था।
अंधेरे में एक जलता दिया--
सूरज का एहसास दिलाएगा,
ऐसा सोचा न था।
आंधी तूफानों में,
जहां बड़े पेड़ हिल जाएंगे,
नन्ही-सी दूब हमें,
अपनी जड़ से--
जुड़े रहने का पाठ पढ़ाएगी
ऐसा सोचा न था।
घर में बंद होकर,
अंदर के कपाट खुलेंगे,
कुंठा और संत्रास सपाट निकलेंगे,
कल्पनाओं की बंजर भूमि से--
कविताओं के बंद सोते फूट पड़ेंगे,
विचार अंकुरित होंगे,
कागज पर आकार लेंगे,
ऐसा सोचा न था।
आशाएं सबल होंगी,
जिजीविषा प्रबल होगी,
हमारे अंदर भी--
एक आकाश होगा,
उमंगों का प्रकाश होगा।
घर में हरियाली होगी,
चेहरों पर लाली होगी,
हास और परिहास होगा,
हर दिन एक खास होगा।
कल का विश्वास होगा,
अपनेपन का--
सहज एहसास होगा।
क्या खोया, क्या पाया
इसका जब हिसाब होगा
पहले से कहीं अधिक
अपने पास होगा--
ऐसा सोचा न था।
