ऐसा क्यों ?
ऐसा क्यों ?
अगर सब कुछ सहती और सुनती रहूँ तो लोग कहते है मुझे संस्कारी
लेकिन अपने लिए आवाज उठाओ तो वही लोग क्यों कहते है मुझे बदतमीज?
अगर घर में रह कर करूँ घर का काम तो कहते है मुझे संस्कारी
लेकिन अगर काम करने जाऊं बहार तो वही लोगों के लिए क्यों बन जाती हूँ आवारा?
अगर दूसरों के लिए करूँ अपने जीवन का समर्पण तो लोगों के लिए बन जाती हूँ मैं महान
लेकिन अपने लिए करूँ कुछ तो वही लोगों के लिए क्यों बन जाती हूँ मैं मतलबी?
अगर पहनूँ सूट सलवार तो कहते है ज़माने के साथ आता नहीं मुझे बदलना
लेकिन पहनूँ थोड़े छोटे और ढीले कपड़े तो क्यों कहते है बेशर्म?
अपनी परिवार की पसंद से हर एक काम करूँ तो कहते है मुझे आज्ञाकारी
लेकिन एक काम अपनी पसंद का करूँ तो क्यों कहते है नहीं है मुझे अपने माँ बाप का आदर?
अगर न हो कोई मेरा दोस्त तो कहते है नहीं आता मुझे घुलना मिलना
लेकिन कोई लड़का भी बन जाये दोस्त तो क्यों कहते है खुले आम उड़ा रही है गुलछर्रे?
दूसरों के सपने पूरे करते करते मर जाने पर ही क्यों बनती हूँ मैं बहुत बढ़िया? और
खुद के सपने पूरे करने पर ही क्यों उठती है मुझ पर हजार उंगलियां?
