ऐ अहल-ए-वतन हमको भी चैन-ओ-अमन
ऐ अहल-ए-वतन हमको भी चैन-ओ-अमन
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ऐ अहल-ए-वतन हमको भी चैन-ओ-अमन दे दे
वरना जंग-ए-वतन में हमको तिरंगे की क़फ़न दे दे
परस्तिश बांट रही इन्सानियत को मजहबी टुकड़ों में
या खुदा इन वतन परस्तों को बस क़दर-ए-वतन दे दे
अपने ही लहु से रंग रही है अपनी ही सरजमीं आज
ला इन सरजमीं को आज एक और जान-ए-वतन दे दे
कहीं वहसत, कहीं दहसत, कहीं आह भरती जिंदगी
वल्लाह! हम तमाम वतन परस्तों को फरोग-ए-वतन दे दे
ना पुछ तारीख़ से मेरे इश्क़-ए-वतन की सनद
मेरे लावारिस मय्यत को बस मादर-ए-वतन दे दे
भरी बहुत है 'ज़फर’ दिलों में दर्द-ए-वतन की आह
मुमकिन है हर दिल में खुदा फिकर-ए-वतन दे दे