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Uday Jha

Children Stories

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Uday Jha

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अधूरी पंक्ति को संवार दे -कश्

अधूरी पंक्ति को संवार दे -कश्

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अधूरी पंक्ति को संवार दे -

कश्ती भी साहिल पर अपनी पहुंच ही जाती


कश्ती भी साहिल पर अपनी पहुंच ही जाती

जीत की मुकाम पर मेरी कदम पहुंच ही जाती।


कलम की रफ्तार मेरी इतनी बढ़ जाती,

बुको के पन्ने भी उसके लिए कम पर जाती।


लाख कंकड़ हो या खाई राह में आ जाती,

मेरी मजबूत इरादों में कभी दरार न आती।


पानी है मुझे मेरी सपनों की मंजिल को,

अपने नींद की मुझको कुर्बानी करनी होगी‌ 


क्या हो गया जो नहीं हूं मैं आम आदमी,

कांपने दो पगो को अगर उनको हो कांपनी।


नहीं है सपने छोटे मेरे भरोसे के न है जिंदगी,

लड़ता रहूंगा तब तक जब है ह‌दय में सांस मेरी।


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