अधूरे इश्क़ की फ़रियाद लेकर
अधूरे इश्क़ की फ़रियाद लेकर
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अधूरे इश्क की फ़रियाद लेकर
कहाँ जाऊं मैं दिल बर्बाद लेकर
दुबारा पास मत आना मेरे तुम
चली जाओ तुम अपनी याद लेकर
छतें तो ठीक हैं घर की मगर मैं
परेशां हूँ बहुत बुनियाद लेकर
सलीके से पढ़ा मुझको नहीं जब
करूँ क्या फिर तुम्हारी दाद लेकर
जहाने दिल में जब तुम ही नहीं तो
करूँ क्या फिर इसे आबाद लेकर
बदन से रूह को आजाद करके
मैं फिरता हूँ बदन आजाद लेकर।