आत्मसम्मान-मेरा गौरव
आत्मसम्मान-मेरा गौरव
1 min
905
मेरी हर राहों पे तूने काँटे ही बिछाए हैं..
उसी काँटों से फूल बनकर मैं लहराऊँगी..
कांच समझकर दिल मेरा तूने तोड़ डाला..
भरोसा मेरा तुने एक पल में ही तबाह कर डाला..
हालात से समझौता कर लूँ इतनी बेबस तो नहीं मैं..
ज़िन्दग़ी अपनी हमेशा तेरे नाम कर लू इतनी कमज़ोर नही मैं..
आसमान को छूने के हैं ख़्वाब मेरे..
समझ में नहीं आएगा वो कभी तेरे..
रिश्तों को जोड़ने की ही पायीं सीख़ बचपन से..
वहीं सीख़ बन जाए अगर बेड़ियाँ मेरी तो क्यों ना तोड़ दूं उसे??
सोचा था ज़िंदगी भर चलूँगी तेरा हाथ थामकर..
पर कम्बख्त तू तो उसके लायक ही नहीं था
बनाना चाहती थी तुझे अपने सर का ताज़
पर अफ़सोस तू तो मेरे जूतों के भी लायक़ नहीं था।
