आस्तित्व
आस्तित्व
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पूर्ण आहुति देकर तन की
क्या संचित कर बैठे हो,
करो आत्मविश्लेषण फिर से
क्या गलती कर बैठे हो।
पले बढ़ जिन संस्कारों में
उन्हें भूल क्यूँ बैठे हो
गढ़ा तुम्हें जिन रिश्तों ने
उन्हें विस्मृत कर बैठे हो।
नए नए में इतना उलझे
सबको पुराना कर बैठे
कल तुम भी पुरातन कहलाओगे
कल कुछ और नया होगा।
भूल गए ये सत्य शाश्वत
कल कुछ और नया होगा,
ठिठक गये क्यूँ....इस विचार से,
क्यूँ इतने अचंभित से बैठे हो।
नए का आनन्द केवल तब तक
जब तक जड़ों से अपनी जुड़े हो
जड़ें खोदकर...तुम अपना
आस्तित्व सीमित कर बैठे हो।