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Shraddha Saxena

Others

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Shraddha Saxena

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आँसू

आँसू

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इस करूणा कल्क हृदय में

अब विकल रागिनी बजती 

क्यों हाहाकार स्वरों में 

वेदना असीम गरजती 

आती हैं शून्य क्षितिज से

क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी 

टकराती बिलखती-सी 

पगली सी देती फेरी 

छिल-छिलकर छाले फोड़े 

मल-मल कर मृदुल चरण से 

धुल-धुल कर बह रह जाते 

आँसू करूणा के कण से

अभिलाषाओं की करवट 

फिर सुप्त व्यथा का जगना 

सुख का सपना हो जाना 

भीगी पलकों का सपना। 


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