आज फिर
आज फिर
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आज फिर याद आ रही है
वो गलियाँ,
आज फिर याद आ रही है
वो किलकारियाँ।
वो माँ के हाथ का खाना,
वो पापा का हमें गाड़ी से घुमाना।
इकलौते ए•सी• रूम में,
अपनी जगह लूटना,
आम की गुठलियों पर
सबसे पहले हाथ मारना।
आज फिर याद आ रही है
वो गलियाँ,
आज फिर याद आ रही है
वो किलकारियाँ।
वो दोस्तों के साथ
पार्क में लाइट लगाकर
देर रात तक बैडमिंटन खेलना,
वो घड़ी-घड़ी किताबों के नीचे
कहानियों कि किताबें पढ़ना।
पूजा अर्चना का न्योता सुनते ही,
सर में तेल लगाकर बैठ जाना।
शादी-ब्याह का न्योता आते ही,
एक पहर पहले कम खाना।
आज फिर याद आ रही है
वो गलियाँ,
आज फिर याद आ रही है
वो किलकारियाँ।
वो पुरस्कार देखते ही
पापा का चाॅक्लेट देना,
वो महंगी शो पीस टूटते ही,
माँ का झूठ बोलकर
हमें पापा की डाँट से बचाना।
टी•वी• के रिमोट के लिए लड़ना,
पसंदीदा गानो की
लिस्ट बनाकर रिकार्ड करना।
माँ की साड़ी पहनकर इतराना
पापा की तरह मूछों पर ताव देना।
दोस्तों के साथ साइकिल पर सवार
नई गलियाँ ढूंढना,
टाफी वाली सिगरेट खाते हुए
अफसर की ऐकटिंग करना।
आज फिर याद आ रही है
वो गलियाँ,
आज फिर याद आ रही है
वो किलकारियाँ।
आज हर कमरे में ए•सी• है
आज हर कमरे में टीवी है।
अलमारी डिजाइनर कपड़ों से भरी है,
पार्किंग की जगह में साइकिल नहीं
महंगी इलेक्ट्रानिक स्कूटी खड़ी है।
फिर भी पता नहीं
क्यों याद आती है
वो गलियाँ,
वो किलकारियाँ।
हाँ,
आज फिर याद आ रही है
वो गलियाँ,
आज फिर याद आ रही है
वो किलकारियाँ ।