आज हमें फिर उस गली से जाना था
आज हमें फिर उस गली से जाना था
आज हमें फिर उस गली से जाना था,
जो कभी हमारी बीती मोहब्बत का ठिकाना था।
हमारी मोहब्बत का गवाह वहाँ पूरा ज़माना था,
आज फिर हमें फिर उस गली से जाना था।
हर दिन ख़ुदा से एक ही ज़ीद लगाएं बैठे थे,
की बस उनको पाना था।
ग़म में डूबे अपने दिल का हाल उसे सुनना था,
उसे बड़े प्यार से समजाना था,
बड़ी सिद्दातों से उन्हें मनाना था।
अगर वो मान जाती तो अपने आप को,
उसकी बाहों में समाना था।
और अगर नही तो , फिर अपने दिल को,
उसे देके उसी से तुड़वाना था।
उनकी दी हुई इतनी ज़िल्लतों के बावजूद,
हमें उस गली से जाना था।
शायद आज तो हम्मे अपने आप को,
अपनी ही नज़रो में गिराना था,
बस यही हमारी मोहब्बत का छोटासा फ़साना था,
अपनी मोहब्बत की इस ज़ंग में शायद,
आज हमें ख़ुद को ही हरवाना था।
अपने इस बेचैन और मंचले दिल को शायद,
आज हम्मे ख़ामोश करवाना था।
शायद, शायद इस लिए हमें ,
आज उस गली से जाना था।
