मैंने जीना सीख लिया
मैंने जीना सीख लिया
बचपन की एक घटना ने मुझे जो सबक दिया वह मुझे जीवन को देखने का नजरिया और बाल मनोविज्ञान की ओर आकर्षित करने में सहायक रहा। बेशक बालमन को समझना ही बाल मनोविज्ञान है। कक्षा मानीटर रहते हुए गरीब व मध्यम वर्ग व अमीर बच्चों की मानसिकता को बहुत बारीकी से समझा।
सबसे सामंजस्य स्थापित किया व कक्षा में लोकप्रिय रहा। स्कूल से आज तक मुझे जीवन दर्शन देने में बाल मनोविज्ञान सहायक रहा। इसी के चलते बाल साहित्यकार के रूप में पहचान बनी। बचपन की एक घटना का जिक्र करना चाहता हूं कि मुझे घर में होने वाली पूजा के लिए कपूरी पान लाने के लिए बाजार जाना पड़ा।
मेरी उम्र आठ नौ साल की रही होगी। दुकान पहुंचा तो देखा कि मेरा हम उम्र मेरा सहपाठी दुकान चला रहा है।
मैं हैरान था कि इतना छोटा बच्चा कैसे दुकान चला रहा है। मेरे मित्र ने मुझे सेल्फ सर्विस का मौका दिया कि मैं स्वयं 25पान गिनती कर लूँ।
वह अपने दूसरे ग्राहक में व्यस्त हो गया। मैं एक एक पान नापकर दूसरी जगह रख रहा था। मित्र ने मेरे नापने के बाद बताया कि पान को ऐसे नहीं। ऐसे नापते हैं कहते हुए उसने पान के सिर्फ डंठल नापे।
मैं कक्षा का मेधावी छात्र था लेकिन आज मैं अपने मित्र के हुनर को सलाम कर रहा था। कहावत यह है कि मछली के बच्चों को तैरना नहीं सिखाना होता है। मैंने जीवन में यह सीख गांठ बांध ली।
फिर हर कार्य को जानने की कोशिश की। विद्यार्थी के बाद शिक्षक की भूमिका में बाल मनोविज्ञान की समझ में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। मुझे लगता है मैंने जीना सीख लिया।