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कुछ...
कुछ ख्वाब रूह...
कुछ ख्वाब...
“
कुछ ख्वाब रूह में इस तरह से घुल जाते हैं,
कि उनके होने से ही, खुद के होने का एहसास होता है।
न अपना न पराया मन पे इख्तियार रखता है,
बस जो मंजर ये ख्वाब दिखाते हैं,
वही इस दिल को गुलज़ार लगता है।
©नेहा जिंदल
”
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