Jyoti Sagar Sana
Literary Colonel
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माँ हूँ, शिक्षक हूँ, नारी हूँ, हिंदी की सेवा करना चाहती हूँ, कुछ ऐसा लिखना चाहती हूँ।

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#प्रज्वलित प्रज्वलित हैं स्वप्न मेरे,मेरे नयनों में, स्वरचित हैं स्वप्न मेरे, मेरे नयनों में, तुम्हें नहीं हक़ इन्हें तोड़ो या भरमाओ, संकलित हैं स्वप्न मेरे, मेरे नयनों में। ~सना~

सरल और प्यारी है ये मेरे देश की बोली, इसे जो प्यार से बोले, ये उसी की होली। भावों की अभिव्यक्ति को सहज ही किया, सभी को अपनाया, सदा मिसरी ही घोली। ~सना~

#सना_की_कलम_से समर-युद्ध जहाँ तलक जाये नजर,बस समर ही समर है, एक चल रहा है बाहर, एक भीतर निरन्तर है। ~सना~

#कविता जो बात कहीं लबों पर आकर रुक जाती है, कविता के रूप में पन्नों पर उतर आती है, जब कोई बात तीर सी चुभ जाती है, कविता जैसे आकर मरहम बन जाती है।

जब भी देखती हूँ कहीं खिले हुए फूलों को, जी बहुत चाहता है फिर से बच्चा हो जाना, कितने काज थमा दिये, हम थोड़े बड़े क्या हुए, ऐ जिन्दगी जरा जिम्मदारियों का बोझ तो हटाना।

बीत जाने दो गये समय की काली रात, आओ करें नये साल में रोशनी की बात।

यीशु ने सिखलाया हमको,माफ कर दो हंसकर दुश्मन को, सलीब पर चढ़ना गर पड़े,तो भी दुखाना नहीं किसी मन को।

फिर से आया दिसम्बर का महीना, त्योहार क्रिसमस का मनाना है। तोहफा प्यार, विश्वास, और समझदारी का, सभी अपनों तक पहुँचाना है।

मुअत्तर- महकना मुअत्तर हैं आज भी किताब के वो पन्ने, जिन पर तुम्हारे दिए गुलाब रखे मैंने।


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