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मेरे सिरहाने एक बगल में रखता हूँ मैं कलम जाने कब तू फिर आ जाये। मेरे सिरहाने एक बगल में रखता हूँ मैं कलम जाने कब तू फिर आ जाये।
तो फिर क्या बदला है बस इतना की वो वृक्ष अब हरा हैं। तो फिर क्या बदला है बस इतना की वो वृक्ष अब हरा हैं।
अब खेल खेल हे धर्मराज खेल तू जुआ हर युग मे खेलेगा एक धर्मराज फिर जुआ। अब खेल खेल हे धर्मराज खेल तू जुआ हर युग मे खेलेगा एक धर्मराज फिर जुआ।