Manpreet Makhija
Literary Colonel
AUTHOR OF THE YEAR 2019 - NOMINEE

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लेखन एक शौक है और मेरी ताकत भी।लेखन से मुझे एक आत्मविश्वास मिलता है।

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बिगड़े हालात या फूटी क़िस्मत तंग बटुआ या फटी जेब कब सँवर जाए, कब निखर जाए कब खुल जाए , कब बन जाए न हम जानते है न तुम ये तो बस वो ही जानता है जिसके हाथो की कठपुतली है हम तुम

जिस देश में कन्या पूजी जाये अगर वहाँ हो ऐसी घटनाएं कि बेटी रोज़ बेपर्दा की जाएं तो वहाँ इंसान नही हैवान बसे है तुम मानो या न मानो, मगर हर गली, कूचे में शैतान खुलेआम हँसे है

सफलता का ऊँचा आसमान मेरी छोटी सी कोशिश और बौनी उड़ान चाहे कितना लम्बा हो सफ़र हौसलें से जीत लूँगी सारा जहान

इश्क़ एक सवाल है, आशिक़ों का ये ख्याल है इसमे जुनून बेमिसाल है,

"बचपनी दिमाग़" दिनभर शैतानिया सूझे हर बात अपने अंदाज में बूझे बचपनी दिमाग़ है सवालों का घर उम्मीदों का एक शहर जैसे कोई विधा महान ऐसा है बाल मनोविज्ञान

"बचपनी दिमाग़" दिनभर शैतानिया सूझे हर बात अपने अंदाज में बूझे बचपनी दिमाग़ है सवालों का घर उम्मीदों का एक शहर जैसे कोई विधा महान ऐसा है बाल मनोविज्ञान

"सरिता हूँ मैं" सर्र सर्र बहती, सरिता हूँ मैं आशाएं, और जीवन समेटे हूँ विशाल सागर है मेरी मंजिल वो ही ठिकाना, वो ही पता बस,इतनी है मेरी आत्मकथा

"मानव स्वयं का दुश्मन" हाथों में कुल्हाड़ी लिए वो हवा काटने जाता है मानव बना खुद का दुश्मन अनमोल खजाने गँवाता है दूषित किया जल, जहरीली की हवा विवेकहीन बन मानव ने किया प्रकृति पर अत्याचार.. अपने ही हाथो कर खुद का सत्यानाश, अब दोहराये आ बैल मुझे मार

"बाहों के झूले" अद्भुत रही प्रेम की बगिया झूमी राधा, नाची सखियां रास रचईया ने छेड़ा साज़ बाँसुरी बनी ह्रदय की आवाज़ वो पनघट भी खूब रहा जहाँ बीती रात कमल दल फूले नैनों की डाली पर पड़े बाहों के झूले


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