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बेपरवाह लोगों को अब गृहस्थी की फ़िक्र है, उनकी बातों में भी अब राशन पानी का ज़िक्र है, मुलाक़ात की... बेपरवाह लोगों को अब गृहस्थी की फ़िक्र है, उनकी बातों में भी अब राशन पानी का ज़ि...
मेरे लिए जो पहले प्यार जैसी थी, वो सहेलियाँ याद आती है जो बहार जैसी थी...! मेरे लिए जो पहले प्यार जैसी थी, वो सहेलियाँ याद आती है जो बहार जैसी थी...!
चरण जो धो रहा है, अपने अश्रुओं से तुम्हारे, द्वारकाधीश नहीं, आज भी तुम्हारा कन्हैया ही है...! चरण जो धो रहा है, अपने अश्रुओं से तुम्हारे, द्वारकाधीश नहीं, आज भी तुम्हारा कन्ह...
इस कविता में नारी अधूरे स्वप्नों को छोड़कर नए जीवन की ओर जा रही है। इस कविता में नारी अधूरे स्वप्नों को छोड़कर नए जीवन की ओर जा रही है।