S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)
Literary Colonel
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I am a constitutionalist & humanist . I respect all religions equally. I am an INDIAN firstly & lastly . Antagonist of caste disorder.

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इंशान को जकड दे जंजीरों में , वो धर्म नहीं है। जिसे करने से पहले ही रूह कांप उठे, कर्म नहीं है। जो मिलकर न बैठे एक जगह समाज नहीं है। जहां सुनी नहीं जाती मजलूमों की, राज नहीं है ।

ठिठुरती ठंड में मैंने भारत को, अख़बार ओढ़ सोते देखा। इस कमर तोड़ महंगाई में, मैंने भारत को रोते देखा । ग्रीष्म ऋतुमें लू के थपेड़े , भारत को सहलाते हैं । वर्षा ऋतु में कितने ही घर भारत के बह जाते हैं।

नेता का सुत फौज में ,अपवाद ही होगा, भाषण में तो हमेशा, देश पर मरते हैं ये। घोटालों-हवालों से अखबार भरा है, काले धन को सदा स्विस बैंक में भरते हैं ये।

क्या कभी देखा है जीवन में ? दो बार , अन्तिम संस्कार। मेरे देशकी राजधानी में आज, हुआ है यही काम पहली बार। ✍️उल्लास भरतपुरी

शर्मनाक,दर्दनाक,दिल को संभाले रखना। जातिवाद का झूँठा गुरुर पाले रखना। मंदिर में,न श्मसान, न घर में सुरक्षित हैं बेटी। बेटी वालो, हो सके तो बेटी को,संभाले रखना। ✍️ उल्लास भरतपुरी

वतन की धूल उड़ उड़ कर, बदन को चूम लेती है। आज़ादी एक पीढ़ी का जिश्मों-जां-खून लेती है। कुछ तिफ़्ल जो खुश हैं, गुलामी ज़ंजीर में। नीचता ,वतन परस्ती का ज़ज़्बा छीन लेती है।

सच्चे और कर्तव्यनिष्ठ को, नहीं डरने की बात। प्रकृति स्वयं निभायेगी, हर सच्चे का साथ।। ✍️उल्लास भरतपुरी

निज कर्त्तव्य बुझावत नाहीं। औरन को सब कुछ समझावहीं। ✍️उल्लास भरतपुरी

गुण, अवगुण चीन्हई नहीं कोई। कान भरहिं सोई मीठा होहिं।


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